Thursday, March 18, 2010

betiya

नाज़ तुम्हें था बेटे पर,



बोझ लगी थीं बेटियां।


बेटों की सब मांगें पूरीं,


तरस रही थीं बेटियां।


पर तकदीर ने पल्टा खाया,


बोझ के वर्ग में तुम्हें बिठाया।


बेटों को तुम बोझ लगे,


ढोने से कतराने लगे,


तब पलकों पर तुम्हें बिठाने,


तैयार खडी थीं बेटियां।


नाज़ तुम्हें था बेटों पर,बोझ लगीं थीं बेटियां

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