घर -भर को जनत बनाती है बेटिया
अपनी तबसुम से इसे जनत बनाती है बेटिया
छलकती है अस्क बनके माँ के दर्दे से
रोते हुए भी बाबुल को हसाती है बेटिया
सुबह की सुहानी धुप सी प्यारी लागे है बेटिया
मंदिर के दिये की बाती है बेटिया
सहती है दुनिया के सारे गम
फिर भी सभी रिश्ते निभाती है बेटिया
बेटे देते है माँ -बाप को आंसू उन आसुओ को सहेजती है बेटिया
फूल सी बिखेरती है चारो और खुसबू ,फिर भी न जाने क्यू जलाई जाती है बेटिया
"itu"
बढ़िया प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.
ReplyDeleteढेर सारी शुभकामनायें.
संजय कुमार
हरियाणा
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