Saturday, December 17, 2011

betiya


"की वोह परियों का रूप होती है …
या कड़कती ठण्ड में सुहानी धुप होती है …
वो होती है उदासी के हर मर्ज़ की दावा की तरह …
या ओस में शीतल हवा की तरह …
वोह चिड़ियों की चेह्चाहाहट है ,
या के निश्छल खिल्किलाहत है …

वोह आँगन में फैला उजाला है ..
या मेरे गुस्से पे लगा ताला है …
वोह पहाड़ की छोटी पे सूरज की किरण है …
या ज़िन्दगी सही जीने का आचरण है …

है वोह ताकत जो छोटे से घर को महल बना दे …
है वोह काफिया जो किसी ग़ज़ल को मुक्कमल कर दे …"

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