ES BLOG ME DI HUAI KUCH KAVITAYE MERI NIJI HAI..BAKI KAHI N KAHI SE DHUNDH KAR MAINE EK COLLECTION KIYA HAI.MERA UDHESIYE BETIYO SE SAMANDHIT MARMIK KAVITAO KA SANGRAH KARNA HAI.YE EK COLLECTION HAI .
Friday, December 30, 2011
betiya
"बचपन की छोड़ चपलता
बेटी हो जाती है जब बड़ी ,
माँ का दिल गबराने लगता है ,
लाड प्यार से पला लाडो को ,
कोई कहे पराया धन,
जब दिल तार-तार हो जाता है,
ये तो है छुइ -मुइ ,
छु न ले कोई इस नाजुक कलि को ,
कही मुरजा न जाय ,
वक्त से पहले ही कही टूट न जाय ,
इस ख्याल से ही, माँ का दिल गबराने लगता है ,
आँखों के सामने अपना वक्त दोड़ने लगता है ,
वो भी थी कभी कलि किसी बाग़ की ,इसकी ही तरह
सपने सजाने चली जाएगी मेरी लाडली ,
रिश्ते की नजाकत को देख ,
माँ का दिल भर आता है ,
है वक्त ठहर जा.. ये यही रुकजा ..
जी लेने दे उसे बचपन अपना ..
बेटिया जब हो जाती है बड़ी माँ का दिल भर आता है |"
daughter(beti)
"A daughter is a wonderful blessing,
A treasure from above,
She's laughter,warmth and special charm,
she's thoughtfulness and love.
A daughter brings a special joy,
that comes from deep inside,
And as she grows to adulthood,
she fills your heart with pride.
she every that passes,
she's more special than before,
Through every stage, through every age,
You love her even more.
No words can decribe the warm memories,
The pride and gratitude,too.
That comes from having a daughter,
To love and to cherish....just like you."
Wednesday, December 28, 2011
betiya
"कहती बेटी बाह पसार
मुझे चाहिए प्यार,दुलार
बेटी की अनदेखी क्यों
करता है निष्ठुर संसार
सोचो जरा हमारे बिन
बसा सकोगे घर परिवार ?
गर्भ से लेके योवन तक
मुझ पर लटक रही तलवार
मेरी व्यथा , वेदना का
अब हो स्थाई उपचार ||"
Saturday, December 24, 2011
बेटियां
बेटियां कभी किसी की अकेली नहीं होती!
परिवार की मोहल्ले की,समाज की और
सृष्टि की शान होती हैं !
क्योंकि उन्हीं से सृष्टि का
प्रारंभ और अंत होता है !
वह स्वयं से ज्यादा
ओरों के लिए जीती हैं!
वह अपना नहीं ,दूसरों का दिया दर्द सहती हैं !
इसलिए वह हमारी शान होती हैं !
बेटिया
"मुझे माँ से गिला , मिला यही सिला , बेटिया क्यों पराई है
खेली कूदी मै जिस आँगन मे
वो भी अपना पराया सा लागे||
खेली कूदी मै जिस आँगन मे
वो भी अपना पराया सा लागे
एसा दस्तूर क्यों है माँ
जोर किस का चला इस के आगे
एक को घर दिया, एक तो वर दिया
तेरी कैसी खुदाई है||
जो भी माँगा मैंने बाबुल से , दिया हस के मुझे बाबुल ने
प्यार इतना दिया है मुझ को, क्या बयाँ करू अपने मुख से
जिस घर मे पली , उस घर से ही माँ , यह कैसी विदाई है||
अच्छा घर सुंदर वर देखा माँ ने, क्षण मे कर दिया उन के हवाले
जिन्दगी भर का यह है बंधन , कह के समझाते है घर वाले
देते दिल से दुआ, खुश रहना सदा , कैसी प्रीत निभाई है||
मुझे माँ से गिला , मिला यही सिला , बेटिया क्यों पराई है
अब तो जाना पड़ेगा मुझ को, विछोडा सहना पड़ेगा सब से
अब तो जाना पड़ेगा मुझ को, विछोडा सहना पड़ेगा सब से
गलतिय माफ़ करना मेरी, दूर रहना पड़ेगा अब से
अच्छा चलती हु माँ , अब गले से लगा ला
बेटिया तो पराई है माँ , बेटिया तो पराई है माँ
मुझे माँ से गिला , मिला यही सिला , बेटिया क्यों पराई है||"
Friday, December 23, 2011
betiya
मत रोको बिटिया को पढने दो,
मत बाँधो उसे बढने दो,
पत्नी होगी, माँ भी होगी,
उसका जीवन तो गढने दो!
मत खीचों उसे चढने दो,
मत थामो उसे गिरने दो,
आसमानों को छू भी लेगी,
कुछ उसको भी उड लेने दो!
मत टोको उसे हँसने दो,
मत छेडो उसे रोने दो,
सबका तो वो सुन ही लेगी,
कुछ उसको भी कह लेने दो!
betiya
क्यूँ दुनिया ने यह रस्म बनाई है
करके इतना बड़ा कहते हैं, जा बेटी तू पराई है
पहले दिन से ही उसको ये पाठ पढ़ाया जाता है
सजा के लाल जोड़े में दुल्हन बनाया जाता है
छुड़ा देते हैं बेटी से बाबुल का यह घर
क्यूँ दुनिया ने यह ज़ालिम रस्म बनाई है
करके इतना बड़ा कहते हैं जा बेटी तू पराई है .
Thursday, December 22, 2011
betiya
बेटे और बेटी में ,
भेद मत कीजिये |
बेटियों को जीने का
अधिकार आप दीजिये |
इंदिरा और कल्पना की,
उड़ान हमने देखी है |
अब अपनी सायना की
शान अब देखिये |
एक दिन नाम यह
तुम्हारा कर जाएँगी
बस एक बेटी घर में
आंगन मे आने पर
घर एक बगिया बन जाएगी ||
Saturday, December 17, 2011
betiya
"की वोह परियों का रूप होती है …
या कड़कती ठण्ड में सुहानी धुप होती है …
वो होती है उदासी के हर मर्ज़ की दावा की तरह …
या ओस में शीतल हवा की तरह …
वोह चिड़ियों की चेह्चाहाहट है ,
या के निश्छल खिल्किलाहत है …
वोह आँगन में फैला उजाला है ..
या मेरे गुस्से पे लगा ताला है …
वोह पहाड़ की छोटी पे सूरज की किरण है …
या ज़िन्दगी सही जीने का आचरण है …
है वोह ताकत जो छोटे से घर को महल बना दे …
है वोह काफिया जो किसी ग़ज़ल को मुक्कमल कर दे …"
कलयुग की बेटिया .
ओस की एक बूँद सी होती है बेटिया ,
मालिक की दी हुई नेमत है बेटिया ,
फिर जाने जहाँ मैं ऐसा क्यों होता है ,
सारे दुखों का बोझ सिर्फ ढोती है बेटिया ,
जो दे जन्म उसे ,उन्ही से तिरस्कृत है बेटिया ,
अपनों के ही जुल्मो सितम से दबती है बेटिया ,
संसार की नज़रों मैं समझे हीन वो खुद को ,
साडी उम्र घुट - घुट के बिताती है बेटिया ,
पर नए ज़माने की बदलती तस्वीर है बेटिया ,
माँ - बाप के हाथों की अब बदलती तकदीर है बेटिया ,
बेटों की तरह वो भी ,करती है नाम रोशन ,
उज्जवल भविष्य का दीप है ये ... कलयुग की बेटिया ..
Sunday, December 11, 2011
betiya
बेटी बनकर आई हूँ मैं माँबाप के जीवन में
बसेरा होगा कल मेरा किसी और के आँगन में ,
क्यों ये रीत खुदा ने बनाई होगी,
कहते है आज नही तो कल बेटी तू पराई होगी,
देकर जनम पाल पोसकर जिसने हमे बड़ा किया
और एक वक़्त उन्ही हाथों ने हमे विदा किया ,
एक पल को नही सोचते अरे ! हमने ये क्या किया ,
टूट के बिखर जाती है हमारी ज़िन्दगी वहीँ
फिर भी उस बंधन में प्यार मिले ये ज़रूरी तो नही
क्यूँ ये रिश्ता हम बेटियों का अजीब होता है ,
क्या बस यही हम बेटियों का नसीब होता है !!
Subscribe to:
Posts (Atom)