सुबह की सुनहली धूप _सी ये मासूम बेटियाँ,
जब घर में जन्म लेती है,
कहीं ख़ुशी तो कहीं मातम होता है,
कहीं तो कोमल कली_सी पाली जाती हैं,
ओर कहीं काली रात _सी धुत्कार दी जाती है,
थोड़ा सा प्यार पा कर खिल जाती हैं,
जहाँ भी जाएँ दूध में पानी_ सी मिल जाती हैं,
सुबह की सुनहली धूप_ सी मासूम
ये बेटियाँ
स्रिस्टी को जन्म देती हैं,
स्रिस्टी को जन्म देती हैं,
अपने गर्भ में पालती हैं,
ओर गर्भ में ही मार दी जाती हैं,
ये बेटियाँ
जग स्तंभ कहलाती हैं
जग स्तंभ कहलाती हैं
फिर भी सहारे को तरसती हैं,
सुबह की सुनहरी धूप सी मासूमयाँ
ये बेटियाँ "
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