न जाने क्यों आज भी
हमारे समाज में
हर घर परिवार में
पुत्र की चाहत का
इज़हार किया जाता है।
गर बेटी हो जाए
गर बेटी हो जाए
तो माँ का तिरस्कार किया जाता है।
कितनी मजबूर होती होगी
कितनी मजबूर होती होगी
वो माँ
जो अपने गर्भ में
पलने वाले बच्चे को
मात्र इस लिए काल के
क्रूर हाथों के हवाले कर दे
कि वो बेटी है।
नष्ट कर देते हैं
नष्ट कर देते हैं
बेटी कि संरचना को
भूल जाते हैं सच्चाई कि
यही बेटियाँ सृष्टि रचती हैं।
शायद ऐसे लोग बेटी की
शायद ऐसे लोग बेटी की
अहमियत नही जानते हैं
बेटा लाख लायक हो
पर बेटियाँ
मन में बसती हैं
उनके रहने से
न जाने कितनी
कल्पनाएँ रचती हैं।
बेटियाँ माँ का
बेटियाँ माँ का
ह्रदय होती हैं , सुकून होती हैं
उसके जीवन के गीतों की
प्यारी सी धुन होती हैं.
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