Thursday, March 29, 2012

बेटियाँ "

बेटियाँ "

शायद पल भर में ही
सयानी हो जाती हैं
बेटियाँ,
घर के अंदर से
दहलीज़ तक कब
आज जाती हैं बेटियाँ

कभी कमसिन, कभी
लक्ष्मी-सी दिखती हैं
बेटियाँ।
पर हर घर की
तकदीर, इक सुंदर
तस्वीर होती हैं
बेटियाँ।

हृदय में लिए उफान,
कई प्रश्न, अनजाने
घर चल देती हैं बेटियाँ,
घर की, ईंट-ईंट पर,
दरवाज़ों की चौखट पर
सदैव दस्तक देती हैं
बेटियाँ।

पर अफ़सोस क्यों सदैव
हम संग रहती नहीं
ये बेटियाँ।

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