Sunday, October 2, 2011

बेटियाँ तो सिर्फ इक एहसास है … :


क्या लिखूं ?…
की वो परियों का रूप होती है …
या का दक्ती ठण्ड में सुहानी धुप होती है …

वो वोह आँगन में फैला उजाला है ॥ या मेरे गुस्से पे लगा ताला हा इ …
वोह पहाड़ कइ छोटी पे सूरज की रन है …
या ज़िन्दगी सही जीने का आचरण है …
है वोह ताकत जो छोटे से घर को महल बना दे …
है वोह काफिया जो किसी ग़ज़ल को मुक्कमल कर दे …
क्या लिखूं ??…
वोह अक्षर जो न हो तोह वर्ण माला अड़ हो ओरी है …
वोह , जो सबसे जादा ज़रूरी है …
ये नहीं कहूँगा की वोह हर वक़्त साथ - साथ होती है ,

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