अपनी बेटी भी प्यारी है और परम्परा भी!
बिटिया जो सबसे प्यारी है, जग में सबसे वह न्यारी है!
बचपन में न वह रोती थी, खा पीकर के जो सोती थी.
बाबाजी सामने रहते थे, बिटिया को चूमा करते थे.
मूंछों को देख वो हंसती थी, बाबा की प्यारी पोती थी!
रोती भी नहीं कभी खुलकर, ‘गूंगी होगी आगे चलकर’ !
ये ‘प्यार के बोल’ निकलते थे, बाबाजी हंसकर कहते थे.
बिटिया थोड़ी अब बड़ी हो गयी, रोऊँ क्यों, अब तो खड़ी हो गयी!
पापा ने सब कुछ झेला है, उनका मन बहुत अकेला है.
रोते वे नहीं विपदाओं से, होते खुश हर आपदाओं से.
जीवन ने उन्हें सिखाया है, अग्नि ने उन्हें तपाया है
सोना तपने से निखरता है, मानव मन तभी सुधरता है!
जो कुछ वे मुझे सिखाते हैं, अपना अनुभव बतलाते हैं.
बेटी तू रोना कभी नहीं, आपा तू खोना कभी नहीं.
वो’ जो सबका दाता है, सबका ही ‘भाग्य-विधाता’ है.
सुनते है ‘वे’ हम सबकी ही, चाहे तुम कहो या कहो नहीं.
सबकी भलाई ‘वे’ करते हैं, भक्तों पर ही ‘वे’ मरते हैं.
बिटिया जैसी तू प्यारी है, तू भी सबका हितकारी है.
‘वो’ दूर देश से आएगा, घोड़े पर तुझे बिठाएगा.
उड़ जायेगा ‘वो’ बन के हवा, पर सदा साथ हो मेरी दुआ.
न कभी तुझे वो रुलाएगा, बातों से सदा हंसायेगा.............
मूंछों को देख वो हंसती थी, बाबा की प्यारी पोती थी!
रोती भी नहीं कभी खुलकर, ‘गूंगी होगी आगे चलकर’ !
ये ‘प्यार के बोल’ निकलते थे, बाबाजी हंसकर कहते थे.
बिटिया थोड़ी अब बड़ी हो गयी, रोऊँ क्यों, अब तो खड़ी हो गयी!
पापा ने सब कुछ झेला है, उनका मन बहुत अकेला है.
रोते वे नहीं विपदाओं से, होते खुश हर आपदाओं से.
जीवन ने उन्हें सिखाया है, अग्नि ने उन्हें तपाया है
सोना तपने से निखरता है, मानव मन तभी सुधरता है!
जो कुछ वे मुझे सिखाते हैं, अपना अनुभव बतलाते हैं.
बेटी तू रोना कभी नहीं, आपा तू खोना कभी नहीं.
वो’ जो सबका दाता है, सबका ही ‘भाग्य-विधाता’ है.
सुनते है ‘वे’ हम सबकी ही, चाहे तुम कहो या कहो नहीं.
सबकी भलाई ‘वे’ करते हैं, भक्तों पर ही ‘वे’ मरते हैं.
बिटिया जैसी तू प्यारी है, तू भी सबका हितकारी है.
‘वो’ दूर देश से आएगा, घोड़े पर तुझे बिठाएगा.
उड़ जायेगा ‘वो’ बन के हवा, पर सदा साथ हो मेरी दुआ.
न कभी तुझे वो रुलाएगा, बातों से सदा हंसायेगा.............
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